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आग्नेय्यां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्डभैरवः

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा ।

भुजङ्गभूषिते देवि भस्मास्थिमणिमण्डितः ।

साधक कुबेर के जीवन की तरह जीता है और हर जगह विजयी होता है। साधक चिंताओं, दुर्घटनाओं और बीमारियों से मुक्त जीवन जीता है।



कथयामि शृणु प्राज्ञ बटोस्तु कवचं शुभम्



मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ॥



भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा । 

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न शक्नोमि प्रभावं वै कवचस्यास्यवर्णितुम्।

कुरुद्वयं check here महेशानि मोहने परिकीर्तितम् ॥ ८॥

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